Summary
For, the turbulent sense-organs do carry away by force, the mind even of this person of discerning, O son of Kunti !
पदच्छेदः
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यततो | यतत् (√यत् + शतृ, ६.१) |
ह्यपि | हि (अव्ययः)–अपि (अव्ययः) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
पुरुषस्य | पुरुष (६.१) |
विपश्चितः | विपश्चित् (६.१) |
इन्द्रियाणि | इन्द्रिय (१.३) |
प्रमाथीनि | प्रमाथिन् (१.३) |
हरन्ति | हरन्ति (√हृ लट् प्र.पु. बहु.) |
प्रसभं | प्रसभम् (अव्ययः) |
मनः | मनस् (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | त | तो | ह्य | पि | कौ | न्ते | य |
पु | रु | ष | स्य | वि | प | श्चि | तः |
इ | न्द्रि | या | णि | प्र | मा | थी | नि |
ह | र | न्ति | प्र | स | भं | म | नः |