Summary
Restraining them (the same-organs) by mind, the master of Yoga would sit making Me his goal; for, the intellect of that person is stabilized whose sense-organs are under control.
पदच्छेदः
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तानि | तद् (२.३) |
सर्वाणि | सर्व (२.३) |
संयम्य | संयम्य (√सम्-यम् + ल्यप्) |
युक्त | युक्त (√युज् + क्त, १.१) |
आसीत | आसीत (√आस् विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
मत्परः | मद्–पर (१.१) |
नाभिनन्दति | न (अव्ययः)–अभिनन्दति (√अभि-नन्द् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
द्वेष्टि | द्वेष्टि (√द्विष् लट् प्र.पु. एक.) |
तस्य | तद् (६.१) |
प्रज्ञा | प्रज्ञा (१.१) |
प्रतिष्ठिता | प्रतिष्ठित (√प्रति-स्था + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ता | नि | स | र्वा | णि | सं | य | म्य |
यु | क्त | आ | सी | त | म | त्प | रः |
व | शे | हि | य | स्ये | न्द्रि | या | णि |
त | स्य | प्र | ज्ञा | प्र | ति | ष्ठि | ता |