Summary
In a person, meditating on sense-objects, attachment or them is born in succession; from attachment springs passion; from passion arises wrath.
पदच्छेदः
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ध्यायतो | ध्यायत् (√ध्या + शतृ, ६.१) |
विषयान्पुंसः | विषय (२.३)–पुंस् (६.१) |
सङ्गस्तेषूपजायते | सङ्ग (१.१)–तद् (७.३)–उपजायते (√उप-जन् लट् प्र.पु. एक.) |
सङ्गात्संजायते | सङ्ग (५.१)–संजायते (√सम्-जन् लट् प्र.पु. एक.) |
कामः | काम (१.१) |
कामात्क्रोधो | काम (५.१)–क्रोध (१.१) |
ऽभिजायते | अभिजायते (√अभि-जन् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ध्या | य | तो | वि | ष | या | न्पुं | सः |
स | ङ्ग | स्ते | षू | प | जा | य | ते |
स | ङ्गा | त्सं | जा | य | ते | का | मः |
का | मा | त्क्रो | धो | ऽभि | जा | य | ते |