Summary
That person, who, by abandoning all desires, consumes [objects] without longing, without a sense of possession and without egotism-he attains peace.
पदच्छेदः
Click to Toggle
विहाय | विहाय (√वि-हा + ल्यप्) |
कामान्यः | काम (२.३)–यद् (१.१) |
सर्वान्पुमांश्चरति | सर्व (२.३)–पुंस् (१.१)–चरति (√चर् लट् प्र.पु. एक.) |
निःस्पृहः | निःस्पृह (१.१) |
निर्ममो | निर्मम (१.१) |
निरहंकारः | निरहंकार (१.१) |
स | तद् (१.१) |
शान्तिमधिगच्छति | शान्ति (२.१)–अधिगच्छति (√अधि-गम् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
वि | हा | य | का | मा | न्यः | स | र्वा |
न्पु | मां | श्च | र | ति | निः | स्पृ | हः |
नि | र्म | मो | नि | र | हं | का | रः |
स | शा | न्ति | म | धि | ग | च्छ | ति |