Summary
I do not clearly see what would drive out my grief, the scorcher of my sense-organs, even after achieving, a prosperous and unrivalled kingship in this earth and also the overlordship of the gods [in the heaven].
पदच्छेदः
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न | न (अव्ययः) |
हि | हि (अव्ययः) |
प्रपश्यामि | प्रपश्यामि (√प्र-पश् लट् उ.पु. ) |
ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् | मद् (६.१)–अपनुद्यात् (√अप-नुद् विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–यद् (१.१)–शोक (२.१)–उच्छोषण (२.१)–इन्द्रिय (६.३) |
अवाप्य | अवाप्य (√अव-आप् + ल्यप्) |
भूमावसपत्नमृद्धं | भूमि (७.१)–असपत्न (२.१)–ऋद्ध (√ऋध् + क्त, २.१) |
राज्यं | राज्य (२.१) |
सुराणामपि | सुर (६.३)–अपि (अव्ययः) |
चाधिपत्यम् | च (अव्ययः)–आधिपत्य (२.१) |
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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न | हि | प्र | प | श्या | मि | म | मा | प | नु | द्या |
द्य | च्छो | क | मु | च्छो | ष | ण | मि | न्द्रि | या | णाम् |
अ | वा | प्य | भू | मा | व | स | प | त्न | मृ | द्धं |
रा | ज्यं | सु | रा | णा | म | पि | चा | धि | प | त्यम् |