Summary
Arjuna said O Janardana, if knowledg is held to be superior to action by You, then why do You engage me in action that is terrible, O Kesava ?
पदच्छेदः
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ज्यायसी | ज्यायस् (१.१) |
चेत्कर्मणस्ते | चेद् (अव्ययः)–कर्मन् (५.१)–त्वद् (६.१) |
मता | मत (√मन् + क्त, १.१) |
बुद्धिर्जनार्दन | बुद्धि (१.१)–जनार्दन (८.१) |
तत्किं | तद् (२.१)–किम् (अव्ययः) |
कर्मणि | कर्मन् (७.१) |
घोरे | घोर (७.१) |
मां | मद् (२.१) |
नियोजयसि | नियोजयसि (√नि-योजय् लट् म.पु. ) |
केशव | केशव (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ज्या | य | सी | चे | त्क | र्म | ण | स्ते |
म | ता | बु | द्धि | र्ज | ना | र्द | न |
त | त्किं | क | र्म | णि | घो | रे | मां |
नि | यो | ज | य | सि | के | श | व |