Summary
'With this you must gratify the devas and let the devas gratify you; [thus] gratifying one another, you shall attain the highest good.'
पदच्छेदः
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देवान्भावयतानेन | देव (२.३)–भावयत (√भावय् लोट् म.पु. द्वि.)–इदम् (३.१) |
ते | तद् (१.३) |
देवा | देव (१.३) |
भावयन्तु | भावयन्तु (√भावय् लोट् प्र.पु. बहु.) |
वः | त्वद् (२.३) |
परस्परं | परस्पर (२.१) |
भावयन्तः | भावयत् (√भावय् + शतृ, १.३) |
श्रेयः | श्रेयस् (२.१) |
परमवाप्स्यथ | पर (२.१)–अवाप्स्यथ (√अव-आप् लृट् म.पु. द्वि.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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दे | वा | न्भा | व | य | ता | ने | न |
ते | दे | वा | भा | व | य | न्तु | वः |
प | र | स्प | रं | भा | व | य | न्तः |
श्रे | यः | प | र | म | वा | प्स्य | थ |