Summary
Whosoever does not roll forward the wheel, thus set in motion in this world, he is a man of sinful life rejoicing in the senses; and he lives in vain, O son of Prtha !
पदच्छेदः
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एवं | एवम् (अव्ययः) |
प्रवर्तितं | प्रवर्तित (√प्र-वर्तय् + क्त, २.१) |
चक्रं | चक्र (२.१) |
नानुवर्तयतीह | न (अव्ययः)–अनुवर्तयति (√अनु-वर्तय् लट् प्र.पु. एक.)–इह (अव्ययः) |
यः | यद् (१.१) |
अघायुरिन्द्रियारामो | अघायु (१.१)–इन्द्रिय–आराम (१.१) |
मोघं | मोघ (२.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
स | तद् (१.१) |
जीवति | जीवति (√जीव् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ए | वं | प्र | व | र्ति | तं | च | क्रं |
ना | नु | व | र्त | य | ती | ह | यः |
अ | घा | यु | रि | न्द्रि | या | रा | मो |
मो | घं | पा | र्थ | स | जी | व | ति |