Summary
No purpose is served for him by what he has done or by what he has not done. For him there is hardly any dependenc on any purpose among all beings.
पदच्छेदः
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नैव | न (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
तस्य | तद् (६.१) |
कृतेनार्थो | कृत (√कृ + क्त, ३.१)–अर्थ (१.१) |
नाकृतेनेह | न (अव्ययः)–अकृत (३.१)–इह (अव्ययः) |
कश्चन | कश्चन (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
चास्य | च (अव्ययः)–इदम् (६.१) |
सर्वभूतेषु | सर्व–भूत (७.३) |
कश्चिदर्थव्यपाश्रयः | कश्चित् (१.१)–अर्थ–व्यपाश्रय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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नै | व | त | स्य | कृ | ते | ना | र्थो |
ना | कृ | ते | ने | ह | क | श्च | न |
न | चा | स्य | स | र्व | भू | ते | षु |
क | श्चि | द | र्थ | व्य | पा | श्र | यः |