Summary
But, O mighty-armed one, the knower of the real nature of the divisions of the Strands and of their [respective] divisions of work, realises : 'The Strands are at their [respective] purposes' And hence he is not attached.
पदच्छेदः
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तत्त्ववित्तु | तत्त्व–विद् (१.१)–तु (अव्ययः) |
महाबाहो | महत्–बाहु (८.१) |
गुणकर्मविभागयोः | गुण–कर्मन्–विभाग (६.२) |
गुणा | गुण (१.३) |
गुणेषु | गुण (७.३) |
वर्तन्त | वर्तन्ते (√वृत् लट् प्र.पु. बहु.) |
इति | इति (अव्ययः) |
मत्वा | मत्वा (√मन् + क्त्वा) |
न | न (अव्ययः) |
सज्जते | सज्जते (√सञ्ज् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त | त्त्व | वि | त्तु | म | हा | बा | हो |
गु | ण | क | र्म | वि | भा | ग | योः |
गु | णा | गु | णे | षु | व | र्त | न्त |
इ | ति | म | त्वा | न | स | ज्ज | ते |