Summary
The Bhagavat said The two-fold path in this world-[the one] with Yoga of knowledge for men of reflection [and the other] with Yoga of action for men of Yoga-has been declared to be one by Me formerly, O sinless one !
पदच्छेदः
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लोके | लोक (७.१) |
ऽस्मिन्द्विविधा | इदम् (७.१)–द्विविध (१.१) |
निष्ठा | निष्ठा (१.१) |
पुरा | पुरा (अव्ययः) |
प्रोक्ता | प्रोक्त (√प्र-वच् + क्त, १.१) |
मयानघ | मद् (३.१)–अनघ (८.१) |
ज्ञानयोगेन | ज्ञान–योग (३.१) |
सांख्यानां | सांख्य (६.३) |
कर्मयोगेन | कर्मन्–योग (३.१) |
योगिनाम् | योगिन् (६.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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लो | के | ऽस्मि | न्द्वि | वि | धा | नि | ष्ठा |
पु | रा | प्रो | क्ता | म | या | न | घ |
ज्ञा | न | यो | गे | न | सां | ख्या | नां |
क | र्म | यो | गे | न | यो | गि | नाम् |