Summary
Renouncing all actions in Me, with mind that concentrates on the Self; being free from the act of reesting and from the sense of possession; and [conseently being free from [mental] fever; you should fight.
पदच्छेदः
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मयि | मद् (७.१) |
सर्वाणि | सर्व (२.३) |
कर्माणि | कर्मन् (२.३) |
संन्यस्याध्यात्मचेतसा | संन्यस्य (√संनि-अस् + ल्यप्)–अध्यात्म–चेतस् (३.१) |
निराशीर्निर्ममो | निराशी (१.१)–निर्मम (१.१) |
भूत्वा | भूत्वा (√भू + क्त्वा) |
युध्यस्व | युध्यस्व (√युध् लोट् म.पु. ) |
विगतज्वरः | विगत (√वि-गम् + क्त)–ज्वर (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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म | यि | स | र्वा | णि | क | र्मा | णि |
सं | न्य | स्या | ध्या | त्म | चे | त | सा |
नि | रा | शी | र्नि | र्म | मो | भू | त्वा |
यु | ध्य | स्व | वि | ग | त | ज्व | रः |