Summary
Those who constantly follow this doctrine of Mine-such men, with faith and without finding fault [in it], are freed from [the results of] all actions.
पदच्छेदः
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ये | यद् (१.३) |
मे | मद् (६.१) |
मतमिदं | मत (२.१)–इदम् (२.१) |
नित्यमनुतिष्ठन्ति | नित्यम् (अव्ययः)–अनुतिष्ठन्ति (√अनु-स्था लट् प्र.पु. बहु.) |
मानवाः | मानव (१.३) |
श्रद्धावन्तो | श्रद्धावत् (१.३) |
ऽनसूयन्तो | अनसूयत् (१.३) |
मुच्यन्ते | मुच्यन्ते (√मुच् प्र.पु. बहु.) |
ते | तद् (१.३) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
कर्मभिः | कर्मन् (३.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ये | मे | म | त | मि | दं | नि | त्य |
म | नु | ति | ष्ठ | न्ति | मा | न | वाः |
श्र | द्धा | व | न्तो | ऽन | सू | य | न्तो |
मु | च्य | न्ते | ते | ऽपि | क | र्म | भिः |