Summary
For, no one can ever remain, even for a moment, as a non-performer of action; because everyone, being not master of himself, is forced to perform action by the Strands born of the Prakrti (Material cause)
पदच्छेदः
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न | न (अव्ययः) |
हि | हि (अव्ययः) |
कश्चित्क्षणमपि | कश्चित् (१.१)–क्षण (२.१)–अपि (अव्ययः) |
जातु | जातु (अव्ययः) |
तिष्ठत्यकर्मकृत् | तिष्ठति (√स्था लट् प्र.पु. एक.)–अ (अव्ययः)–कर्मन्–कृत् (१.१) |
कार्यते | कार्यते (√कारय् प्र.पु. एक.) |
ह्यवशः | हि (अव्ययः)–अवश (१.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
सर्वः | सर्व (१.१) |
प्रकृतिजैर्गुणैः | प्रकृति–ज (३.३)–गुण (३.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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न | हि | क | श्चि | त्क्ष | ण | म | पि |
जा | तु | ति | ष्ठ | त्य | क | र्म | कृत् |
का | र्य | ते | ह्य | व | शः | क | र्म |
स | र्वः | प्र | कृ | ति | जै | र्गु | णैः |