Summary
But, controlling sense-organs by mind, whosoever undertakes the Yoga of action with the action-senses he, the detached one, is superior [to others], O Arjuna !
पदच्छेदः
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यस्त्विन्द्रियाणि | यद् (१.१)–तु (अव्ययः)–इन्द्रिय (२.३) |
मनसा | मनस् (३.१) |
नियम्यारभते | नियम्य (√नि-यम् + ल्यप्)–आरभते (√आ-रभ् लट् प्र.पु. एक.) |
ऽर्जुन | अर्जुन (८.१) |
कर्मेन्द्रियैः | कर्मेन्द्रिय (३.३) |
कर्मयोगमसक्तः | कर्मन्–योग (२.१)–असक्त (१.१) |
स | तद् (१.१) |
विशिष्यते | विशिष्यते (√वि-शिष् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | स्त्वि | न्द्रि | या | णि | म | न | सा |
नि | य | म्या | र | भ | ते | ऽर्जु | न |
क | र्मे | न्द्रि | यैः | क | र्म | यो | ग |
म | स | क्तः | स | वि | शि | ष्य | ते |