Summary
You must perform your action which has been enjoined. For, action is superior to inaction; and even the maintenance of your body could not be properly accomplished through inaction.
पदच्छेदः
Click to Toggle
नियतं | नियत (√नि-यम् + क्त, २.१) |
कुरु | कुरु (√कृ लोट् म.पु. ) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
त्वं | त्वद् (१.१) |
कर्म | कर्मन् (१.१) |
ज्यायो | ज्यायस् (१.१) |
ह्यकर्मणः | हि (अव्ययः)–अकर्मन् (५.१) |
शरीरयात्रापि | शरीर–यात्रा (१.१)–अपि (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
ते | त्वद् (६.१) |
न | न (अव्ययः) |
प्रसिध्येदकर्मणः | प्रसिध्येत् (√प्र-सिध् विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–अ (अव्ययः)–कर्मन् (६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
नि | य | तं | कु | रु | क | र्म | त्वं |
क | र्म | ज्या | यो | ह्य | क | र्म | णः |
श | री | र | या | त्रा | पि | च | ते |
न | प्र | सि | ध्ये | द | क | र्म | णः |