Summary
The world is fettered by action which is other than the Yajnartha action; hence, O son of Kunti, being freed from attachment, you most properly perform Yajnartha action.
पदच्छेदः
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यज्ञार्थात्कर्मणो | यज्ञ–अर्थ (५.१)–कर्मन् (५.१) |
ऽन्यत्र | अन्यत्र (अव्ययः) |
लोको | लोक (१.१) |
ऽयं | इदम् (१.१) |
कर्मबन्धनः | कर्मन्–बन्धन (१.१) |
तदर्थं | तद्–अर्थ (२.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
मुक्तसङ्गः | मुक्त (√मुच् + क्त)–सङ्ग (१.१) |
समाचर | समाचर (√समा-चर् लोट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | ज्ञा | र्था | त्क | र्म | णो | ऽन्य | त्र |
लो | को | ऽयं | क | र्म | ब | न्ध | नः |
त | द | र्थं | क | र्म | कौ | न्ते | य |
मु | क्त | स | ङ्गः | स | मा | च | र |