Summary
Many persons, who are free from passion, fear and anger; are full of Me; take refuge in Me; and have become pure by the austerity of wisdom-they have come to My being.
पदच्छेदः
Click to Toggle
वीतरागभयक्रोधा | वीत (√वि-इ + क्त)–राग–भय–क्रोध (१.३) |
मन्मया | मद्–मय (१.३) |
मामुपाश्रिताः | मद् (२.१)–उपाश्रित (√उपा-श्रि + क्त, १.३) |
बहवो | बहु (१.३) |
ज्ञानतपसा | ज्ञान–तपस् (३.१) |
पूता | पूत (√पू + क्त, १.३) |
मद्भावमागताः | मद्–भाव (२.१)–आगत (√आ-गम् + क्त, १.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
वी | त | रा | ग | भ | य | क्रो | धा |
म | न्म | या | मा | मु | पा | श्रि | ताः |
ब | ह | वो | ज्ञा | न | त | प | सा |
पू | ता | म | द्भा | व | मा | ग | ताः |