Summary
Actions do not stain Me; nor do I have a desire for the fruits [of actions] also. Whosoever comprehends Me as such, he is not bound by actions.
पदच्छेदः
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न | न (अव्ययः) |
मां | मद् (२.१) |
कर्माणि | कर्मन् (१.३) |
लिम्पन्ति | लिम्पन्ति (√लिप् लट् प्र.पु. बहु.) |
न | न (अव्ययः) |
मे | मद् (६.१) |
कर्मफले | कर्मन्–फल (७.१) |
स्पृहा | स्पृहा (१.१) |
इति | इति (अव्ययः) |
मां | मद् (२.१) |
यो | यद् (१.१) |
ऽभिजानाति | अभिजानाति (√अभि-ज्ञा लट् प्र.पु. एक.) |
कर्मभिर्न | कर्मन् (३.३)–न (अव्ययः) |
स | तद् (१.१) |
बध्यते | बध्यते (√बन्ध् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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न | मां | क | र्मा | णि | लि | म्प | न्ति |
न | मे | क | र्म | फ | ले | स्पृ | हा |
इ | ति | मां | यो | ऽभि | जा | ना | ति |
क | र्म | भि | र्न | स | ब | ध्य | ते |