Summary
Even the wise are perplexed about what is action and what is non-action; I shall preperly teach you the action, by knowing which you shall be freed from evil.
पदच्छेदः
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किं | क (१.१) |
कर्म | कर्मन् (१.१) |
किमकर्मेति | क (१.१)–अकर्मन् (१.१)–इति (अव्ययः) |
कवयो | कवि (१.३) |
ऽप्यत्र | अपि (अव्ययः)–अत्र (अव्ययः) |
मोहिताः | मोहित (√मोहय् + क्त, १.३) |
तत्ते | तद् (२.१)–त्वद् (४.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
प्रवक्ष्यामि | प्रवक्ष्यामि (√प्र-वच् लृट् उ.पु. ) |
यज्ज्ञात्वा | यद् (२.१)–ज्ञात्वा (√ज्ञा + क्त्वा) |
मोक्ष्यसे | मोक्ष्यसे (√मुच् लृट् म.पु. ) |
ऽशुभात् | अशुभ (५.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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किं | क | र्म | कि | म | क | र्मे | ति |
क | व | यो | ऽप्य | त्र | मो | हि | ताः |
त | त्ते | क | र्म | प्र | व | क्ष्या | मि |
य | ज्ज्ञा | त्वा | मो | क्ष्य | से | ऽशु | भात् |