Summary
Being rid of cravings, having mind and self (body) all controlled, abandoning all sense of possession, and performing exclusively bodily action, he does not incur any sin.
पदच्छेदः
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निराशीर्यतचित्तात्मा | निराशी (१.१)–यत (√यम् + क्त)–चित्त–आत्मन् (१.१) |
त्यक्तसर्वपरिग्रहः | त्यक्त (√त्यज् + क्त)–सर्व–परिग्रह (१.१) |
शारीरं | शारीर (२.१) |
केवलं | केवल (२.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
कुर्वन्नाप्नोति | कुर्वत् (√कृ + शतृ, १.१)–आप्नोति (√आप् लट् प्र.पु. एक.) |
किल्बिषम् | किल्बिष (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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नि | रा | शी | र्य | त | चि | त्ता | त्मा |
त्य | क्त | स | र्व | प | रि | ग्र | हः |
शा | री | रं | के | व | लं | क | र्म |
कु | र्व | न्ना | प्नो | ति | कि | ल्बि | षम् |