Summary
The action gets dissolved completely in the case of the person who undertakes it for the sake of sacrifice; who is rid of attachment and is freed; and who has his mind fixed in wisdom.
पदच्छेदः
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गतसङ्गस्य | गत (√गम् + क्त)–सङ्ग (६.१) |
मुक्तस्य | मुक्त (√मुच् + क्त, ६.१) |
ज्ञानावस्थितचेतसः | ज्ञान–अवस्थित (√अव-स्था + क्त)–चेतस् (६.१) |
यज्ञायाचरतः | यज्ञ (४.१)–आचरत् (√आ-चर् + शतृ, ६.१) |
कर्म | कर्मन् (१.१) |
समग्रं | समग्र (१.१) |
प्रविलीयते | प्रविलीयते (√प्रवि-ली लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ग | त | स | ङ्ग | स्य | मु | क्त | स्य |
ज्ञा | ना | व | स्थि | त | चे | त | सः |
य | ज्ञा | या | च | र | तः | क | र्म |
स | म | ग्रं | प्र | वि | ली | य | ते |