Summary
The Brahman-oblation that is to be offered ot the Brahman, is poured into the Brahman-fire by the Brahman; it is nothing but the Brahman that is to be attained by him whose deep contemplation is the [said] Brahman-action.
पदच्छेदः
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ब्रह्मार्पणं | ब्रह्मन्–अर्पण (१.१) |
ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ | ब्रह्मन्–हविस् (१.१)–ब्रह्मन्–अग्नि (७.१) |
ब्रह्मणा | ब्रह्मन् (३.१) |
हुतम् | हुत (√हु + क्त, १.१) |
ब्रह्मैव | ब्रह्मन् (२.१)–एव (अव्ययः) |
तेन | तद् (३.१) |
गन्तव्यं | गन्तव्य (√गम् + कृत्, १.१) |
ब्रह्मकर्मसमाधिना | ब्रह्मन्–कर्मन्–समाधि (३.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ब्र | ह्मा | र्प | णं | ब्र | ह्म | ह | वि |
र्ब्र | ह्मा | ग्नौ | ब्र | ह्म | णा | हु | तम् |
ब्र | ह्मै | व | ते | न | ग | न्त | व्यं |
ब्र | ह्म | क | र्म | स | मा | धि | ना |