Summary
[Yet] others offer the sense-organs like sense-of-hearing and the rest into the fiires of [their] restrainer; others offer the objects like sound and the rest into the fires of the sense-organs.
पदच्छेदः
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श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये | श्रोत्र–आदि (२.३)–इन्द्रिय (२.३)–अन्य (१.३) |
संयमाग्निषु | संयम–अग्नि (७.३) |
जुह्वति | जुह्वति (√हु लट् प्र.पु. बहु.) |
श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये | श्रोत्र–आदि (२.३)–इन्द्रिय (२.३)–अन्य (१.३) |
संयमाग्निषु | संयम–अग्नि (७.३) |
जुह्वति | जुह्वति (√हु लट् प्र.पु. बहु.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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श्रो | त्रा | दी | नी | न्द्रि | या | ण्य | न्ये |
सं | य | मा | ग्नि | षु | जु | ह्व | ति |
श | ब्दा | दी | न्वि | ष | या | न | न्य |
इ | न्द्रि | या | ग्नि | षु | जु | ह्व | ति |