Summary
By knowing which you shall not get deluded once again in this manner, O son of Pandu; and by which means you shall see all beings without exception in [your] Self i.e., in Me.
पदच्छेदः
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यज्ज्ञात्वा | यद् (२.१)–ज्ञात्वा (√ज्ञा + क्त्वा) |
न | न (अव्ययः) |
पुनर्मोहमेवं | पुनर् (अव्ययः)–मोह (२.१)–एवम् (अव्ययः) |
यास्यसि | यास्यसि (√या लृट् म.पु. ) |
पाण्डव | पाण्डव (८.१) |
येन | यद् (३.१) |
भूतान्यशेषेण | भूत (२.३)–अशेष (३.१) |
द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो | द्रक्ष्यसि (√दृश् लृट् म.पु. )–आत्मन् (७.१)–अथो (अव्ययः) |
मयि | मद् (७.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | ज्ज्ञा | त्वा | न | पु | न | र्मो | ह |
मे | वं | या | स्य | सि | पा | ण्ड | व |
ये | न | भू | ता | न्य | शे | षे | ण |
द्र | क्ष्य | स्या | त्म | न्य | थो | म | यि |