Summary
O Dhananjaya ! Actions do not bind him who has renounced [all] actions through Yoga; who has cut off his doubts by the sword of knowledge; and who is a master of his own self.
पदच्छेदः
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योगसंन्यस्तकर्माणं | योग–संन्यस्त (√संनि-अस् + क्त)–कर्मन् (२.१) |
ज्ञानसंछिन्नसंशयम् | ज्ञान–संछिन्न (√सम्-छिद् + क्त)–संशय (२.१) |
आत्मवन्तं | आत्मवत् (२.१) |
न | न (अव्ययः) |
कर्माणि | कर्मन् (१.३) |
निबध्नन्ति | निबध्नन्ति (√नि-बन्ध् लट् प्र.पु. बहु.) |
धनंजय | धनंजय (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यो | ग | सं | न्य | स्त | क | र्मा | णं |
ज्ञा | न | सं | छि | न्न | सं | श | यम् |
आ | त्म | व | न्तं | न | क | र्मा | णि |
नि | ब | ध्न | न्ति | ध | नं | ज | य |