Summary
Though [I am] unborn and the changeless Self; though I am the the Lord of [all] beings; yet presiding over My own nature I take birth by My own Trick-of-illusion.
पदच्छेदः
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अजो | अज (१.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
सन्नव्ययात्मा | सत् (√अस् + शतृ, १.१)–अव्यय–आत्मन् (१.१) |
भूतानामीश्वरो | भूत (६.३)–ईश्वर (१.१) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
सन् | सत् (√अस् + शतृ, १.१) |
प्रकृतिं | प्रकृति (२.१) |
स्वामधिष्ठाय | स्व (२.१)–अधिष्ठाय (√अधि-स्था + ल्यप्) |
सम्भवाम्यात्ममायया | सम्भवामि (√सम्-भू लट् उ.पु. )–आत्मन्–माया (३.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | जो | ऽपि | स | न्न | व्य | या | त्मा |
भू | ता | ना | मी | श्व | रो | ऽपि | सन् |
प्र | कृ | तिं | स्वा | म | धि | ष्ठा | य |
सं | भ | वा | म्या | त्म | मा | य | या |