Summary
For the protection of the good people, and for the destruction of evil-doers, and for the purpose of firmly establishing righteousness, I take birth in every age.
पदच्छेदः
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परित्राणाय | परित्राण (४.१) |
साधूनां | साधु (६.३) |
विनाशाय | विनाश (४.१) |
च | च (अव्ययः) |
दुष्कृताम् | दुष्कृत् (६.३) |
धर्मसंस्थापनार्थाय | धर्म–संस्थापन–अर्थ (४.१) |
सम्भवामि | सम्भवामि (√सम्-भू लट् उ.पु. ) |
युगे | युग (७.१) |
युगे | युग (७.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प | रि | त्रा | णा | य | सा | धू | नां |
वि | ना | शा | य | च | दु | ष्कृ | ताम् |
ध | र्म | सं | स्था | प | ना | र्था | य |
सं | भ | वा | मि | यु | गे | यु | गे |