Summary
Who performs actions by offering them to the Brahman and giving up attachment-he is not stained by sin just as the lotus-leaf is [not stained] by water.
पदच्छेदः
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योगस्थः | योग–स्थ (१.१) |
कुरु | कुरु (√कृ लोट् म.पु. ) |
कर्माणि | कर्मन् (२.३) |
सङ्गं | सङ्ग (२.१) |
त्यक्त्वा | त्यक्त्वा (√त्यज् + क्त्वा) |
धनंजय | धनंजय (८.१) |
लिप्यते | लिप्यते (√लिप् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
स | तद् (१.१) |
पापेन | पाप (३.१) |
पद्मपत्रमिवाम्भसा | पद्म–पत्त्र (१.१)–इव (अव्ययः)–अम्भस् (३.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ब्र | ह्म | ण्या | धा | य | क | र्मा | णि |
स | ङ्गं | त्य | क्त्वा | क | रो | ति | यः |
लि | प्य | ते | न | स | पा | पे | न |
प | द्म | प | त्र | मि | वा | म्भ | सा |