Summary
Taking, rejecting, receiving, opening and closing the eyes, bears in mind that the sense-organs are on their respective objects; and
पदच्छेदः
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प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि | प्रलपत् (√प्र-लप् + शतृ, १.१)–विसृजत् (√वि-सृज् + शतृ, १.१)–गृह्णत् (√ग्रह् + शतृ, १.१)–उन्मिषत् (√उत्-मिष् + शतृ, १.१)–निमिषत् (√नि-मिष् + शतृ, १.१)–अपि (अव्ययः) |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य | इन्द्रिय (२.३)–इन्द्रिय–अर्थ (५.३)–तद् (६.१) |
प्रज्ञा | प्रज्ञा (१.१) |
प्रतिष्ठिता | प्रतिष्ठित (√प्रति-स्था + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प्र | ल | प | न्वि | सृ | ज | न्गृ | ह्ण |
न्नु | न्मि | ष | न्नि | मि | ष | न्न | पि |
इ | न्द्रि | या | णी | न्द्रि | या | र्थे | षु |
व | र्त | न्त | इ | ति | धा | र | यन् |