Summary
Having abandoned [the attachment for] the fruit of actions, the master of Yoga attains the highest Peace. [But] the person, other than the master of Yoga, attached to the fruit of action, is bound by his action born of desire.
पदच्छेदः
Click to Toggle
युक्तः | युक्त (√युज् + क्त, १.१) |
कर्मफलं | कर्मन्–फल (२.१) |
त्यक्त्वा | त्यक्त्वा (√त्यज् + क्त्वा) |
शान्तिमाप्नोति | शान्ति (२.१)–आप्नोति (√आप् लट् प्र.पु. एक.) |
नैष्ठिकीम् | नैष्ठिक (२.१) |
अयुक्तः | अ (अव्ययः)–युक्त (√युज् + क्त, १.१) |
कामकारेण | कामकार (३.१) |
फले | फल (७.१) |
सक्तो | सक्त (√सञ्ज् + क्त, १.१) |
निबध्यते | निबध्यते (√नि-बन्ध् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
यु | क्तः | क | र्म | फ | लं | त्य | क्त्वा |
शा | न्ति | मा | प्नो | ति | नै | ष्ठि | कीम् |
अ | यु | क्तः | का | म | का | रे | ण |
फ | ले | स | क्तो | नि | ब | ध्य | ते |