Summary
Having renounced all actions by mind, a man of self-control, dwells happily in his body, a nine-win-dowed mansion, neither performing, nor causing others to perform [actions].
पदच्छेदः
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सर्वकर्माणि | सर्व–कर्मन् (२.३) |
मनसा | मनस् (३.१) |
संन्यस्यास्ते | संन्यस्य (√संनि-अस् + ल्यप्)–आस्ते (√आस् लट् प्र.पु. एक.) |
सुखं | सुखम् (अव्ययः) |
वशी | वशिन् (१.१) |
नवद्वारे | नवन्–द्वार (७.१) |
पुरे | पुर (७.१) |
देही | देहिन् (१.१) |
नैव | न (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
कुर्वन्न | कुर्वत् (√कृ + शतृ, १.१)–न (अव्ययः) |
कारयन् | कारयत् (√कारय् + शतृ, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र्व | क | र्मा | णि | म | न | सा |
सं | न्य | स्या | स्ते | सु | खं | व | शी |
न | व | द्वा | रे | पु | रे | दे | ही |
नै | व | कु | र्व | न्न | का | र | यन् |