Summary
The Lord (Self) acires neither the state of being a creator of the world, nor the actions, nor the connecting with the fruits of their actions. But it is the inherent nature [in It] that exerts.
पदच्छेदः
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न | न (अव्ययः) |
कर्तृत्वं | कर्तृ–त्व (२.१) |
न | न (अव्ययः) |
कर्माणि | कर्मन् (२.३) |
लोकस्य | लोक (६.१) |
सृजति | सृजति (√सृज् लट् प्र.पु. एक.) |
प्रभुः | प्रभु (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
कर्मफलसंयोगं | कर्मन्–फल–संयोग (२.१) |
स्वभावस्तु | स्वभाव (१.१)–तु (अव्ययः) |
प्रवर्तते | प्रवर्तते (√प्र-वृत् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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न | क | र्तृ | त्वं | न | क | र्मा | णि |
लो | क | स्य | सृ | ज | ति | प्र | भुः |
न | क | र्म | फ | ल | सं | यो | गं |
स्व | भा | व | स्तु | प्र | व | र्त | ते |