Summary
The Omnimanifest (Soul) takes [upon Itself] neither sin nor merit [born] of any [action]. But, the perfect knowledge is clouded by Illusion and hence the creatures are deluded.
पदच्छेदः
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नादत्ते | न (अव्ययः)–आदत्ते (√आ-दा लट् प्र.पु. एक.) |
कस्यचित्पापं | कश्चित् (६.१)–पाप (२.१) |
न | न (अव्ययः) |
चैव | च (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
सुकृतं | सुकृत (२.१) |
विभुः | विभु (१.१) |
अज्ञानेनावृतं | अज्ञान (३.१)–आवृत (√आ-वृ + क्त, १.१) |
ज्ञानं | ज्ञान (१.१) |
तेन | तेन (अव्ययः) |
मुह्यन्ति | मुह्यन्ति (√मुह् लट् प्र.पु. बहु.) |
जन्तवः | जन्तु (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ना | द | त्ते | क | स्य | चि | त्पा | पं |
न | चै | व | सु | कृ | तं | वि | भुः |
अ | ज्ञा | ने | ना | वृ | तं | ज्ञा | नं |
ते | न | मु | ह्य | न्ति | ज | न्त | वः |