Summary
Whosoever, right here, before abandoning the body, is capable of bearing the force sprung from desire and wrath-he is considered to be a man of Yoga and a happy man.
पदच्छेदः
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ये | यद् (१.३) |
हि | हि (अव्ययः) |
संस्पर्शजा | संस्पर्श–ज (१.३) |
भोगा | भोग (१.३) |
दुःखयोनय | दुःख–योनि (१.३) |
एव | एव (अव्ययः) |
ते | तद् (१.३) |
आद्यन्तवन्तः | आदि–अन्तवत् (१.३) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
न | न (अव्ययः) |
तेषु | तद् (७.३) |
रमते | रमते (√रम् लट् प्र.पु. एक.) |
बुधः | बुध (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ये | हि | सं | स्प | र्श | जा | भो | गा |
दुः | ख | यो | न | य | ए | व | ते |
आ | द्य | न्त | व | न्तः | कौ | न्ते | य |
न | ते | षु | र | म | ते | बु | धः |