Summary
He, whose pleasure, delight and again light are just within-O son of Prtha ! he attains the supreme Yoga, himself becoming the Brahman.
पदच्छेदः
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शक्नोतीहैव | शक्नोति (√शक् लट् प्र.पु. एक.)–इह (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
यः | यद् (१.१) |
सोढुं | सोढुम् (√सह् + तुमुन्) |
प्राक्शरीरविमोक्षणात् | प्राक् (अव्ययः)–शरीरविमोक्षण (५.१) |
कामक्रोधोद्भवं | काम–क्रोध–उद्भव (२.१) |
वेगं | वेग (२.१) |
स | तद् (१.१) |
युक्तः | युक्त (√युज् + क्त, १.१) |
स | तद् (१.१) |
सुखी | सुखिन् (१.१) |
नरः | नर (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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श | क्नो | ती | है | व | यः | सो | ढुं |
प्रा | क्श | री | र | वि | मो | क्ष | णात् |
का | म | क्रो | धो | द्भ | वं | वे | गं |
स | यु | क्तः | स | सु | खी | न | रः |