Summary
That person may be considered a man of permanent renunciation, who neither hates nor desires. For, O mighty-armed ! he who is free from the pairs [of opposites] is easily released from bondage [of action].
पदच्छेदः
Click to Toggle
ज्ञेयः | ज्ञेय (√ज्ञा + कृत्, १.१) |
स | तद् (१.१) |
नित्यसंन्यासी | नित्य–संन्यासिन् (१.१) |
यो | यद् (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
द्वेष्टि | द्वेष्टि (√द्विष् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
काङ्क्षति | काङ्क्षति (√काङ्क्ष् लट् प्र.पु. एक.) |
निर्द्वंद्वो | निर्द्वंद्व (१.१) |
हि | हि (अव्ययः) |
महाबाहो | महत्–बाहु (८.१) |
सुखं | सुखम् (अव्ययः) |
बन्धात्प्रमुच्यते | बन्ध (५.१)–प्रमुच्यते (√प्र-मुच् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
ज्ञे | यः | स | नि | त्य | सं | न्या | सी |
यो | न | द्वे | ष्टि | न | का | ङ्क्ष | ति |
नि | र्द्वं | द्वो | हि | म | हा | बा | हो |
सु | खं | ब | न्धा | त्प्र | मु | च्य | ते |