Summary
The Bhagavat said He who performs his bounden action, not depending on its fruit, in the man of renunciation and also the man of Yoga ! and not he, who remains [simply] without his fires and actions [is a Samnyasin or a Yogin]
पदच्छेदः
Click to Toggle
अनाश्रितः | अनाश्रित (१.१) |
कर्मफलं | कर्मन्–फल (२.१) |
कार्यं | कार्य (√कृ + कृत्, २.१) |
कर्म | कर्मन् (२.१) |
करोति | करोति (√कृ लट् प्र.पु. एक.) |
यः | यद् (१.१) |
स | तद् (१.१) |
संन्यासी | संन्यासिन् (१.१) |
च | च (अव्ययः) |
योगी | योगिन् (१.१) |
च | च (अव्ययः) |
न | न (अव्ययः) |
निरग्निर्न | निरग्नि (१.१)–न (अव्ययः) |
चाक्रियः | च (अव्ययः)–अक्रिय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
अ | ना | श्रि | तः | क | र्म | फ | लं |
का | र्यं | क | र्म | क | रो | ति | यः |
स | सं | न्या | सी | च | यो | गी | च |
न | नि | र | ग्नि | र्न | चा | क्रि | यः |