Summary
What [the learned] call renunciation, O son of Pandu, know that to be [the same as] the Yoga. For without renouncing intention [for fruit], one does not become a man of Yoga.
पदच्छेदः
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यं | यद् (२.१) |
संन्यासमिति | संन्यास (२.१)–इति (अव्ययः) |
प्राहुर्योगं | प्राहुः (√प्र-अह् लिट् प्र.पु. बहु.)–योग (२.१) |
तं | तद् (२.१) |
विद्धि | विद्धि (√विद् लोट् म.पु. ) |
पाण्डव | पाण्डव (८.१) |
न | न (अव्ययः) |
ह्यसंन्यस्तसंकल्पो | हि (अव्ययः)–असंन्यस्त–संकल्प (१.१) |
योगी | योगिन् (१.१) |
भवति | भवति (√भू लट् प्र.पु. एक.) |
कश्चन | कश्चन (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यं | सं | न्या | स | मि | ति | प्रा | हु |
र्यो | गं | तं | वि | द्धि | पा | ण्ड | व |
न | ह्य | सं | न्य | स्त | सं | क | ल्पो |
यो | गी | भ | व | ति | क | श्च | न |