Summary
Setting up in a clean place his own [suitable] firm seat which is predominantly of cloth, skin and kusa-grass, and which, is neither too high nor too low for him;
पदच्छेदः
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शुचौ | शुचि (७.१) |
देशे | देश (७.१) |
प्रतिष्ठाप्य | प्रतिष्ठाप्य (√प्रति-स्थापय् + ल्यप्) |
स्थिरमासनमात्मनः | स्थिर (२.१)–आसन (२.१)–आत्मन् (६.१) |
नात्युच्छ्रितं | न (अव्ययः)–अति (अव्ययः)–उच्छ्रित (√उत्-श्रि + क्त, २.१) |
नातिनीचं | न (अव्ययः)–अति (अव्ययः)–नीच (२.१) |
चैलाजिनकुशोत्तरम् | चैल–अजिन–कुश–उत्तर (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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शु | चौ | दे | शे | प्र | ति | ष्ठा | प्य |
स्थि | र | मा | स | न | मा | त्म | नः |
ना | त्यु | च्छ्रि | तं | ना | ति | नी | चं |
चै | ला | जि | न | कु | शो | त्त | रम् |