Summary
Sitting there on the seat and making the mind single-pointed, let him, with the activities of his mind and senses subdued, practise Yoga for self-purification.
पदच्छेदः
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तत्रैकाग्रं | तत्र (अव्ययः)–एकाग्र (२.१) |
मनः | मनस् (२.१) |
कृत्वा | कृत्वा (√कृ + क्त्वा) |
यतचित्तेन्द्रियक्रियः | यत (√यम् + क्त)–चित्त–इन्द्रिय–क्रिया (१.१) |
उपविश्यासने | उपविश्य (√उप-विश् + ल्यप्)–आसन (७.१) |
युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये | युञ्ज्यात् (√युज् विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–योग (२.१)–आत्मन्–विशुद्धि (४.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त | त्रै | का | ग्रं | म | नः | कृ | त्वा |
य | त | चि | त्ते | न्द्रि | य | क्रि | यः |
उ | प | वि | श्या | स | ने | यु | ञ्ज्या |
द्यो | ग | मा | त्म | वि | शु | द्ध | ये |