Summary
Being calm-minded, fearless, firm in the vow of celibacy; controlling mind fully; let the master of Yoga remain, fixing his mind in Me and having Me [alone] as his supreme goal.
पदच्छेदः
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प्रशान्तात्मा | प्रशान्त (√प्र-शम् + क्त)–आत्मन् (१.१) |
विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते | विगत (√वि-गम् + क्त)–भी (१.१)–ब्रह्मचारिन्–व्रत (७.१) |
स्थितः | स्थित (√स्था + क्त, १.१) |
तानि | तद् (२.३) |
सर्वाणि | सर्व (२.३) |
संयम्य | संयम्य (√सम्-यम् + ल्यप्) |
युक्त | युक्त (√युज् + क्त, १.१) |
आसीत | आसीत (√आस् विधिलिङ् प्र.पु. एक.) |
मत्परः | मद्–पर (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प्र | शा | न्ता | त्मा | वि | ग | त | भी |
र्ब्र | ह्म | चा | रि | व्र | ते | स्थि | तः |
म | नः | सं | य | म्य | म | च्चि | त्तो |
यु | क्त | आ | सी | त | म | त्प | रः |