Summary
Yoga is neither for him who eats too much; nor for him who totally abstains from eating; nor for him who is prone to sleep too much; and nor for him who keeps awake too much.
पदच्छेदः
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नात्यश्नतस्तु | न (अव्ययः)–अत्यश्नत् (√अति-अश् + शतृ, ६.१)–तु (अव्ययः) |
योगो | योग (१.१) |
ऽस्ति | अस्ति (√अस् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
चैकान्तम् | च (अव्ययः)–एकान्तम् (अव्ययः) |
अनश्नतः | अन् (अव्ययः)–अश्नत् (√अश् + शतृ, ६.१) |
न | न (अव्ययः) |
चातिस्वप्नशीलस्य | च (अव्ययः)–अति (अव्ययः)–स्वप्न–शील (६.१) |
जाग्रतो | जाग्रत् (√जागृ + शतृ, ६.१) |
नैव | न (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
चार्जुन | च (अव्ययः)–अर्जुन (८.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ना | त्य | श्न | त | स्तु | यो | गो | ऽस्ति |
न | चै | का | न्त | म | न | श्न | तः |
न | चा | ति | स्व | प्न | शी | ल | स्य |
जा | ग्र | तो | नै | व | चा | र्जु | न |