Summary
'Just as a lamp in the windless place does not shake' - This simile is recalled in the case of the man of Yoga, with subdued mind, practising the Yoga in the Self.
पदच्छेदः
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यथा | यथा (अव्ययः) |
दीपो | दीप (१.१) |
निवातस्थो | निवात–स्थ (१.१) |
नेङ्गते | न (अव्ययः)–इङ्गते (√इङ्ग् लट् प्र.पु. एक.) |
सोपमा | तद् (१.१)–उपमा (१.१) |
स्मृता | स्मृत (√स्मृ + क्त, १.१) |
योगिनो | योगिन् (६.१) |
यतचित्तस्य | यत (√यम् + क्त)–चित्त (६.१) |
युञ्जतो | युञ्जत् (√युज् + शतृ, ६.१) |
योगमात्मनः | योग (२.१)–आत्मन् (६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | था | दी | पो | नि | वा | त | स्थो |
ने | ङ्ग | ते | सो | प | मा | स्मृ | ता |
यो | गि | नो | य | त | चि | त्त | स्य |
यु | ञ्ज | तो | यो | ग | मा | त्म | नः |