Summary
Indeed the Supreme Bliss comes to this highly tranil-minded man of Yoga, whose passions remain ietened, who has become the Brahman and who is free from sins.
पदच्छेदः
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प्रशान्तमनसं | प्रशान्त (√प्र-शम् + क्त)–मनस् (२.१) |
ह्येनं | हि (अव्ययः)–एनद् (२.१) |
योगिनं | योगिन् (२.१) |
सुखमुत्तमम् | सुख (१.१)–उत्तम (१.१) |
उपैति | उपैति (√उप-इ लट् प्र.पु. एक.) |
शान्तरजसं | शान्त (√शम् + क्त)–रजस् (२.१) |
ब्रह्मभूतमकल्मषम् | ब्रह्मन्–भूत (√भू + क्त, २.१)–अकल्मष (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प्र | शा | न्त | म | न | सं | ह्ये | नं |
यो | गि | नं | सु | ख | मु | त्त | मम् |
उ | पै | ति | शा | न्त | र | ज | सं |
ब्र | ह्म | भू | त | म | क | ल्म | षम् |