Summary
He, who has yoked the self in Yoga and observes everything eally perceives the Self to be abiding in all beings and all beings to be abiding in the Self.
पदच्छेदः
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सर्वभूतस्थमात्मानं | सर्व–भूत–स्थ (२.१)–आत्मन् (२.१) |
सर्वभूतानि | सर्व–भूत (२.३) |
चात्मनि | च (अव्ययः)–आत्मन् (७.१) |
ईक्षते | ईक्षते (√ईक्ष् लट् प्र.पु. एक.) |
योगयुक्तात्मा | योग–युक्त (√युज् + क्त)–आत्मन् (१.१) |
सर्वत्र | सर्वत्र (अव्ययः) |
समदर्शनः | सम–दर्शन (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र्व | भू | त | स्थ | मा | त्मा | नं |
स | र्व | भू | ता | नि | चा | त्म | नि |
ई | क्ष | ते | यो | ग | यु | क्ता | त्मा |
स | र्व | त्र | स | म | द | र्श | नः |