Summary
He who observes Me in all and observes all in Me-for him I am not lost and he too is not lost for me.
पदच्छेदः
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यो | यद् (१.१) |
मां | मद् (२.१) |
पश्यति | पश्यति (√दृश् लट् प्र.पु. एक.) |
सर्वत्र | सर्वत्र (अव्ययः) |
सर्वं | सर्व (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
मयि | मद् (७.१) |
पश्यति | पश्यति (√दृश् लट् प्र.पु. एक.) |
तस्याहं | तद् (६.१)–मद् (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
प्रणश्यामि | प्रणश्यामि (√प्र-नश् लट् उ.पु. ) |
स | तद् (१.१) |
च | च (अव्ययः) |
मे | मद् (६.१) |
न | न (अव्ययः) |
प्रणश्यति | प्रणश्यति (√प्र-नश् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यो | मां | प | श्य | ति | स | र्व | त्र |
स | र्वं | च | म | यि | प | श्य | ति |
त | स्या | हं | न | प्र | ण | श्या | मि |
स | च | मे | न | प्र | ण | श्य | ति |