Summary
Whosoever finds pleasure or pain eally in all as in the case of himself-that person is considered to be a great man of Yoga, O Arjuna !
पदच्छेदः
Click to Toggle
आत्मौपम्येन | आत्मन्–औपम्य (३.१) |
सर्वत्र | सर्वत्र (अव्ययः) |
समं | सम (२.१) |
पश्यति | पश्यति (√दृश् लट् प्र.पु. एक.) |
यो | यद् (१.१) |
ऽर्जुन | अर्जुन (८.१) |
सुखं | सुख (२.१) |
वा | वा (अव्ययः) |
यदि | यदि (अव्ययः) |
वा | वा (अव्ययः) |
दुःखं | दुःख (२.१) |
स | तद् (१.१) |
योगी | योगिन् (१.१) |
परमो | परम (१.१) |
मतः | मत (√मन् + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|
आ | त्मौ | प | म्ये | न | स | र्व | त्र |
स | मं | प | श्य | ति | यो | ऽर्जु | न |
सु | खं | वा | य | दि | वा | दुः | खं |
स | यो | गी | प | र | मो | म | तः |