Summary
Arjuna said This Yoga of eal-mindedness which has been spoken of by You, O slayer of Mandhu, I do not find [any] proper foundation for it, because of the unsteadiness of the mind.
पदच्छेदः
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यो | यद् (१.१) |
ऽयं | इदम् (१.१) |
योगस्त्वया | योग (१.१)–त्वद् (३.१) |
प्रोक्तः | प्रोक्त (√प्र-वच् + क्त, १.१) |
साम्येन | साम्य (३.१) |
मधुसूदन | मधुसूदन (८.१) |
एतस्याहं | एतद् (६.१)–मद् (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
पश्यामि | पश्यामि (√दृश् लट् उ.पु. ) |
चञ्चलत्वात्स्थितिं | चञ्चल–त्व (५.१)–स्थिति (२.१) |
स्थिराम् | स्थिर (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यो | ऽयं | यो | ग | स्त्व | या | प्रो | क्तः |
सा | म्ये | न | म | धु | सू | द | न |
ए | त | स्या | हं | न | प | श्या | मि |
च | ञ्च | ल | त्वा | त्स्थि | तिं | स्थि | राम् |