Summary
Arjuna said A person who has faith and is desirous of reaching the path (goal) of the good; [but] whose mind has severed from the Yoga; to which goal does he go, having failed to attain the success in Yoga ? O Krsna !
पदच्छेदः
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अयतिः | अयति (१.१) |
श्रद्धयोपेतो | श्रद्धा (३.१)–उपेत (√उप-इ + क्त, १.१) |
योगाच्चलितमानसः | योग (५.१)–चलित (√चल् + क्त)–मानस (१.१) |
अप्राप्य | अ (अव्ययः)–प्राप्य (√प्र-आप् + ल्यप्) |
योगसंसिद्धिं | योग–संसिद्धि (२.१) |
कां | क (२.१) |
गतिं | गति (२.१) |
कृष्ण | कृष्ण (८.१) |
गच्छति | गच्छति (√गम् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | य | तिः | श्र | द्ध | यो | पे | तो |
यो | गा | च्च | लि | त | मा | न | सः |
अ | प्रा | प्य | यो | ग | सं | सि | द्धिं |
कां | ग | तिं | कृ | ष्ण | ग | च्छ | ति |